Mahalaxmi Vrat Katha

महालक्ष्मी व्रत कथा

 – महालक्ष्मी पहली पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में गजलक्ष्मी व्रत यानि महालक्ष्मी व्रत (mahalaxmi vrat katha) का विशेष महत्व है। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन से यह व्रत शुरू होता है और 16 दिन तक यह व्रत किया जाता है। इस व्रत में मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने से सुख – समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। इस व्रत से जुड़ी कई तरह की लोककथाएं हैं लेकिन कुछ कथाएं काफी प्रचलित हैं। 

महाभारत काल के दौरान एक बार महर्षि वेदव्यास जी ने हस्तिनापुर का भ्रमण किया। महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें अपने राजमहल में पधारने का आमंत्रण दिया। रानी गांधारी और रानी कुंती ने मुनि वेद व्यास से पूछा कि हे मुनि आप बताएं कि हमारे राज्य में धन की देवी मां लक्ष्मी और सुख-समृद्धि कैसे बनी रहे। यह सुनकर वेदव्यास जी ने कहा कि यदि आप अपने राज्य में सुख-समृद्धि चाहते हैं तो प्रतिवर्ष अश्विनी कृष्ण अष्टमी को विधिवत श्री महालक्ष्मी का व्रत करें। 

महालक्ष्मी व्रत कथा

मुनि की बात सुनकर कुंती और गांधारी दोनों ने महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat Katha) करने का संकल्प लिया। रानी गांधारी ने अपने राजमहल के आंगन में 100 पुत्रों की मदद से विशालकाय गज का निर्माण करवाया । नगर की सभी स्त्रियों को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु रानी कुंती को निमंत्रण नहीं भेजा। जब सभी महिलाएं गांधारी के राजमहल पूजन के लिए जाने लगी तो, कुंती उदास हो गई। माता को दुखी देखकर पांचों पांडवों ने पूछा कि माता आप उदास क्यों हैं? तब कुंती ने सारी बात बता दी। 

इस पर अर्जुन ने कहा कि माता आप महालक्ष्मी पूजन की तैयारी कीजिए, मैं आपके लिए हाथी लेकर आता हूं। ऐसा कहकर अर्जुन इंद्र के पास गए  और इंद्रलोक से अपनी माता के लिए ऐरावत हाथी लेकर आए। जब नगर की महिलाओं को पता चला कि रानी कुंती के महल में स्वर्ग से ऐरावत हाथी आया है तो सारे नगर में शोर मच गया। हाथी को देखने के लिए पूरा नगर एकत्र हो गया  और सभी विवाहित महिलाओं ने विधि विधान से महालक्ष्मी (Mahalaxmi Vrat Katha) का पूजन किया। पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत की कहानी को 16 बार कहा जाता है  हर चीज या पूजन सामग्री 16  बार चढ़ाई जाती है। 

 – महालक्ष्मी दूसरी पौराणिक कथा

 – महालक्ष्मी दूसरी व्रत कथा

पौराणिक कथानुसार, प्राचीन काल में एक बार एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था। वह भगवान विष्णु का परमभक्त था। एक दिन उसकी भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और मनचाहा वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण ने कहा कि उसके घर में हमेशा लक्ष्मी का वास हो। इस इच्छा को जानने के बाद विष्णुजी ने कहा कि उसे लक्ष्मी तो प्राप्त हो सकती है लेकिन उसके लिए उसे थोड़ा प्रयत्न करना होगा। भगवान विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने एक स्त्री रोज आती है  और यहां आकर उपले पाथती है, तुम बस अपने घर उन्हें आने का निमंत्रण देना। वह स्त्री ही देवी मां लक्ष्मी हैं। अगर वह स्त्री तुम्हारे घर आती है तो तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा। इतना कहकर भगवान विष्णु अदृश्य हो गए। 

Mahalaxmi Vrat Katha

अगले दिन सुबह 4 बजे ब्राह्मण मंदिर के सामने बैठ गया  और जब धन की देवी मां लक्ष्मी उपले पाथने आईं तो ब्राह्मण ने उन्हें अपने घर में आने का निवेदन किया। ब्राह्मण के व्यक्तव को सुनकर लक्ष्मी जी समझ गईं कि ये सब विष्णु जी का किया धराया है। माता लक्ष्मी (Mahalaxmi) ने कहा कि तुम 16 दिन तक महालक्ष्मी व्रत को विधि पूर्वक करों  और रात-दिन चंद्रमा को अर्घ्य दो तो मैं तुम्हारे घर आऊंगी।

 देवी के कहे अनुसार ब्राह्मण ने देवी का व्रत एवं पूजन किया  और उत्तर की दिशा की ओर मुख करके लक्ष्मीजी को पुकारा। अपने वचन को पूरा करने के लिए धन की देवी प्रकट हुईं  और उन्होंने  गरीब ब्राह्मण के हर कष्ट को दूर किया और उसके घर को सुख-संपत्ति से भर दिया। 

 – महालक्ष्मी तीसरी पौराणिक कथा

 – महालक्ष्मी तीसरी व्रत कथा

पौराणिक कथानुसार, एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक यानि भूलोक में गमन करने के लिये निकल पड़े। माता लक्ष्मी ने भी निवेदन किया कि वह भी उनके साथ आना चाहती हैं। भगवान विष्णु उनके स्वभाव से परिचित थे  इसलिये पहले ही उन्हें आगाह किया कि मैं आपको एक ही शर्त पर साथ लेकर चल सकता हूं। माता लक्ष्मी मन ही मन बहुत खुश हुई कि चलो सशर्त ही सही भगवन साथ ले जाने के लिये तो माने।

माता फटाक से बोली मुझे सारी शर्तें मंजूर हैं। भगवान विष्णु ने कहा जो मैं कहूं जैसा मैं कहूं आपको वैसा ही करना होगा। माता बोली ठीक है आप जैसा कहेंगें मैं वैसा ही करूंगी। दोनों भू लोक पर आकर विचरण करने लगे। एक जगह रुककर श्री हरि ने माता से कहा कि मैं दक्षिण दिशा की तरफ जा रहा हूं। आपको यहीं पर मेरा इंतजार करना होगा। यह कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की तरफ बढ़ गये।

महालक्ष्मी व्रत कथा

अब माता को जिज्ञासा हुई कि दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है जो भगवान मुझे वहां नहीं ले जाना चाहते। माता का स्वभाव तो वैसे भी चंचल ही माना जाता है। उनसे वहां पर ज्यादा देर नहीं रुका गया और वे भगवान विष्णु की तरफ ही बढ़ने लगी। आगे जाकर माता को सरसों का खेत दिखाई दिया। उसकी सुंदरता ने माता का मन मोह लिया। वे फूलों को तोड़कर अपना श्रृंगार करने लगीं।

 इसके बाद वे कुछ ही दूर आगे बढ़ी थी कि गन्ने के खेत उन्हें दिखाई दिये। उन्हें गन्ना चूसने की इच्छा हुई  तो गन्ने तोड़कर उन्हें चूसने लगी कि भगवान विष्णु वापस आ गए। सरसों के फूलों से सजी माता लक्ष्मी को गन्ना चूसते हुए देखकर भगवान विष्णु उन पर क्रोधित हो गये। भगवान ने कहा कि आपने शर्त का उल्लंघन किया है। मैनें आपको वहां रूकने के लिये कहा था लेकिन आप नहीं रूकी और यहां किसान के खेतों से फूल व गन्ने तोड़कर आपने अपराध किया है। इसकी आपको सजा मिलेगी। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को 12 वर्ष तक किसान की सेवा करने का शाप दे दिया और स्वंय क्षीरसागर गमन कर गये।

महालक्ष्मी व्रत कथा

 अब विवश माता लक्ष्मी को किसान के घर रहना पड़ा। एक दिन माता लक्ष्मी ने किसान की पत्नी को देवी लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करने को कहा  और बोला कि इससे तुम जो भी मांगोगी तुम्हें मिलेगा। कृषक की पत्नी ने वैसा ही किया। कुछ ही दिनों में उनका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। हंसी खुशी समृद्धि में 12 साल का समय बीत गया। जब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लेने के लिये आये   तो किसान ने माता को न जाने देने का हठ किया।

इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस की दिन यदि वह विधिपूर्वक मेरी पूजा करे तो वह उसके घर से नहीं जाएंगी। लेकिन वह इस दौरान उन्हें दिखाई नहीं देंगी। वह एक कलश की स्थापना करे  और उसमें कुछ धन रखे यानि धन ही लक्ष्मी का रूप होगा। इस प्रकार तेरस के दिन किसान ने माता के बताये अनुसार ही पूजा कर कलश स्थापना की और किसान का घर धन-धान्य से पूर्ण रहने लगा। तब से लेकर आज तक धनतेरस पर माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा भी चली आ रही है।

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