Amlki Ekadashi Vrat Katha

आमलकी एकादशी व्रत कथा

हिंदू धर्म में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी, आंवला एकादशी (Amla Ekadashi), रंगभरनी एकादशी (Rangbhari Ekadashi), श्रीनाथद्वारा मे कुंज एकादशी और खाटू नगरी मे खाटू एकादशी (Khatu Ekadashi) के नाम से जाता है। इस एकादशी (Amlki Ekadashi Vrat Katha) में भगवान विष्णु के साथ-साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा होती है। मान्यताओं अनुसार जो कोई भी इस एकादशी का सच्चे मन से व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां जानिए आमलकी एकादशी व्रत कथा ।

वैदिश नाम का एक नगर था जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी वर्ण आनंद से रहते थे। उस नगर में हमेशा वेद ध्वनि गूंजा करती थी और वहां किसी प्रकार का कोई अपराध नहीं होता था। साथ ही उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था। जो अत्यंत विद्वान और धर्मी था। उस नगर में हर कोई सक्षम था कोई भी व्यक्ति गरीब और कंजूस नहीं था। साथ ही उस नगरी के सभी लोग विष्णु भक्त थे और एकादशी का व्रत किया करते थे।

Amlki Ekadashi Vrat Katha

एक दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। उस दिन राजा समेत उनकी पूरी प्रजा ने विधि पूर्वक व्रत किया। राजा ने अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से आंवले का पूजन किया और साथ में ये स्तुती की…’हे धात्री (आंवले का पेड़)! तुम ब्रह्मस्वरूप हो, ब्रह्माजी ने तुम्हें उत्पन्न किया है और सभी पापों का नाश करने वाले हो, तुम्हें मेरा नमस्कार है। अब तुम मेरा अर्घ्य स्वीकार करो। तुम श्रीराम चन्द्रजी द्वारा सम्मानित हो, मैं प्रार्थना करता हूं या करती हूं, अत: आप मेरे समस्त पापों का नाश करो।’ इस स्तुति को पढ़ते हुए उस मंदिर में सब ने रात्रि में जागरण किया।

Amlki Ekadashi Vrat Katha

रात में वहां एक बहेलिया आया, जो अत्यंत पापी और दुराचारी था। वह जीव-हत्या करके ही अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। उस दिन वह भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल था। वह इस जागरण को देखने के लिए मंदिर के कोने में बैठ गया और विष्णु भगवान तथा एकादशी माहात्म्य की कथा सुनने लगा। इस तरह अन्य मनुष्यों की भांति उसने भी एकादशी की सारी रात जागकर बिता दी।

सुबह होते ही सब लोग अपने घर चले गए तो बहेलिया भी घर चला गया। घर जाकर उसने भोजन ग्रहण किया। कुछ समय बीतने के बाद उस बहेलिए की मृत्यु हो गई।मगर उस दिन अनजाने में रखे गए आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ पड़ा। युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना के सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा।

Amlki Ekadashi Vrat Katha

 

एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गए। लेकिन वह मार्ग भूल गये और उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गये। थोड़ी देर बाद पहाड़ी म्लेच्छ वहां आए और राजा को अकेला देखकर मारो, मारो शब्द करते हुए राजा को मारने के लिए उनकी ओर दौड़े। म्लेच्छ कहने लगे कि इसी दुष्ट राजा ने हमारे अनेक संबंधियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है। अत: अब इसका अंत अवश्य होगा।

ऐसा कहकर वे सभी म्लेच्छ उस राजा को मारने के लिए दौड़े और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उसके ऊपर फेंके। लेकिन वे सब अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते ही नष्ट हो जाते। अब उन म्लेच्छों के अस्त्र-शस्त्र उलटा उन्हीं पर प्रहार करने लगे थे जिससे वे सभी मूर्छित होकर गिरने लगे। उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह स्त्री अत्यंत सुंदर थी लेकिन उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, उसकी आंखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी। वह स्त्री म्लेच्छों को मारने दौड़ी और थोड़ी ही देर में सभी म्लेच्छों को उसने मार गिराया।

Amlki Ekadashi Vrat Katha

जब राजा सोकर उठे तो उन्होंने म्लेच्छों को मरा हुआ देखा और सोचने लगे कि इन शत्रुओं को किसने मारा है? इस वन में मेरा कौन हितैषी था जिसने मुझे बचाया? वह ऐसा विचार कर ही रहे थे कि आकाशवाणी हुई: हे राजा! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन तेरी सहायता कर सकता है। इस तरह की आकाशवाणी को सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने राज्य जाकर सुख पूर्वक रहने लगे।

कहते हैं यह आमलकी एकादशी व्रत कथा का ही प्रभाव था कि राजा को कुछ नहीं हुआ। अत: जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

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